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'आदमी शेर नचावत रहत है साहब
हम का इ मिट्टी को न नचाव सकत है'
यह कहते हुए बाँध लिया उसने
साफा अपने सिर पर
जैसे धारण कर रहा हो मुकुट कोई सेनापति
युद्ध में जाने से पहले
तीन बार कुँए की जगत को छुआ उसने
और माथे से लगाया
लिया ऊपर वाले का नाम
लाख मना करने पर भी उतर गया वह
चालीस फिट गहरे गड्ढे में
लगातार गिर रही थी उसके दीवारों से मिट्टी
किसी भी समय धँस सकती थी दीवारें
उसकी स्मृतियों में थी
बहुत सारी घटनाएँ मिट्टी में दबने की
लेकिन वह अभी याद नहीं करना चाहता है उन्हें
वह उतरता गया गहराई में
पगहा पकड़े हुए
संकल्प था - पानी खोजकर ही दम लेगा।
लौटकर नहीं आया वह फिर कभी
लोग कहते हैं - कुआँ निगल गया उसे
नहीं,
कुआँ नहीं
कहो - रोटी निगल गई उसे।
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